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ओ शायरा, हमारी ख्वाबपरी / आलोक श्रीवास्तव-२

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चांद लहरों में घुला
और एक लहर समूची
मैंने भर ली अंजलि में

तुम्हारी आवाज
कोमल, दृढ़, उदास आवाज़
वादियों को पार करती
सरसों के खेत
और गंगा के पानी पर छा उठी

तुम बड़ी शिद्दत से जिसकी हथेली पकड़े थी
एक धुंध में वह शख़्स गुम होता दिखा
एक उदासी सी तिर आयी तुम्हारी आंखों में

संदल के पानी में भींगे तुम्हारे बाल
चंदन के मिस से दमकता जिस्म
और तुम्हारे तन के सुंदर-वन में
टूट कर छायी हरियाली
सब पर रात के काले केशों का जादू...

जंगल की वीरान हवा
पर्वत-पार की बांसुरी
विरह की चुप्पी तुम्हारे होंठ पर

ओ शायरा !
हमारी ख़्वाबपरी
गाओ हमारे लिये
चांद सितारों के थक कर सोने तक ....


परवीन शाकिर का असमय निधन १९९४ के दिसंबर के आखिरी हफ़्ते में कार-दुर्घटना में हो गया. यह कविता उनकी खूबसूरत नज्मों की याद में .