भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नज़रों से ओझल / सुधा ओम ढींगरा

Kavita Kosh से
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:12, 26 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा }} <poem> मस्जिदों की अजाने मंदिरों क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मस्जिदों की अजाने
मंदिरों के घंटे
शून्य चीरते
हवाओं संग गूंजते
बुलाएँ ऐसे जैसे शाम को सहर.


सुखद क्षणों में भूलें
दुखद पलों में पुकारें
गम की लहरें
खोजें उसका ठौर
ढूंढें ऐसे जैसे रात को पहर.

हर गाँव
हर बस्ती में
है उसका बसर
फिर क्यूँ भटके इधर-उधर
खोजा ऐसे जैसे सागर को लहर.

झलक न पाई उसकी
पढ़ डाले वेद-पुराण
नज़रों से ओझल रहा
देखा हर द्वार
कम रही आराधना
पाया न ऐसे जैसे आंसू को नज़र.