Last modified on 27 फ़रवरी 2009, at 22:20

ज़िन्दगी को हिसाब में रखिये / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:20, 27 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़ |संग्रह=रास्ता बनता रहे / ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ज़िन्दगी को हिसाब में रखिये
आबरू के दबाब में रखिये

दुश्मनी के सभी सवालों पर
दोस्ती को जवाब में रखिये

कोई कमज़र्फ़ पेश आ जाये
ख़ुद को अपने सबाब में

ज़िन्दगी बेसबब लगे तो उसे
चाँद और माहताब में रखिये

मैकशी आपको न पी जाये
ये सलीक़ा शराब में रखिये

मंज़िलों के लिये ज़रूरी है
इज़्तराबी को ताब में रखिये

यूँ भी रुस्वा अज़ीम होता है
कुछ हलीमीं रुआब में रखिये

मौत-दर-मौत लम्हा -लम्हा है
ज़िन्दगी को तो ख़्वाब में रखिये

देखिये फिर उसे ज़रा ‘परवेज़’
थोड़ी शबनम गुलाब में रखिये