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यह साहब / सौरभ

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यह मेरे हैं जाने-पहचाने
जानता तो इन्हें पहले से था बहुत
अब पहचान भी गया हूँ
यह दूर से ही देते हैं सुकून सूर्य की तरह
सच में खाते हैं यह कसमें झूठी
इतराते हैं काँटों में खिले फूल की तरह
जानता तो इन्हें पहले से था बहुत
अब पहचान भी गया हूँ
गुस्से में यह खाँसने लगते हैं
जाल में फाँसने लगते हैं
खुश हो ज़ोर से हँसने लगते हैं दावत में बुलाते हैं
कभी देखकर भी नहीं देखते
कभी घर दौड़े चले आते हैं
यह साहब ऐसे ही हैं।