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पागलों की बस्ती / सौरभ

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मदहोशी की बस्ती में
होश की बात न कर
बात कर साकी की मयखाने की
अन्धेरों में भटके हैं ये बरसों
यहाँ रोशनी का ज़िक्र न कर
मत कर बातें यहाँ मशालों की
मयखाने में बैठ
कुछ पीने-पिलाने का दौर बढ़ा
पागल, मत कर होश की बातें
पागलों की बस्ती में
सज़ाए काला-पानी पाएगा
चढ़ा जा एक छोटा सा जाम
हुजूम में तू भी झूम जा ।