भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुर्दों की बस्ती / सौरभ

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:06, 28 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौरभ |संग्रह=कभी तो खुलेगा / सौरभ }} <Poem> यहाँ मुर्द...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहाँ मुर्दे बात करते हैं
मौत के बाद बात करते हैं लोग
उसके आदेशों की
जो चला गया
जीवित के जीवन में
नहीं झलकती सोच
नहीं दिखाते आदर्श
जब जीवन विदा हो जाता
राख को पूजते हैं लोग
देते हैं पुरस्कार मरणोपरांत
जीवित राम को मिलता है
यहाँ बनवास
कृष्ण को कहा जाता चोर
बापू को मिलती है गोली
अर्थी को दिया जाता है कँधा
मसीहा को ही दी जाती है सूली
साधो यह मुर्दों की बस्ती