भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दास्तान / सौरभ

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:18, 28 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौरभ |संग्रह=कभी तो खुलेगा / सौरभ }} <Poem> हमारी दास्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारी दास्तान शुरू तो
सदियों पहले हुई
अभी तक खतम नहीं हो पाई है
जो वाक्या कुछ लम्हों से शुरू किया
सदियाँ उससे रंग़ीन है
खुदा करे ऐसे ही चलती रहे
हमारी यह दास्तान
यह सिलसिला कभी खत्म न हो
बहते रहें दरिया यूँ ही
फूलों पर भँवरे भी मँडाराते रहें
हम गीत खुशी के गाते रहें