Last modified on 1 मार्च 2009, at 02:12

पत्‍थर होता जिस्‍म़ / हरकीरत हकीर

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:12, 1 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} <Poem> तुम गढ़ते रहे देह की मिट्‌टी पर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम गढ़ते रहे
देह की मिट्‌टी पर
अपने नाम के अक्षर
हथौडो़ की चोट से
जिस्‍म़ मेरा
पत्‍थर होता रहा..