भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गर्ल्स कॉमन रूम / रेखा

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 1 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा |संग्रह=अपने हिस्से की धूप / रेखा }} <poem> एक उम...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक उमस भरा दिन
छप्पर के नीचे बहती गरमी
और रेल के थर्ड-क्लास डिब्बे की तरह
खचाखच भरा
यह कॉमन-रूम

एक भद्दी हँसी
एक नख़रीली मुस्कान
रंग-बिरंगे गिलाफ़ों में लिपटे
काले-गोरे शरीर
बोरे में ठूँसी रुई की तरह
बेढंगी
प्रैसड-तहदार बातें
और उनसे उठती
निरन्तर
एक उबक

अचानक
घण्टी का बजना
थर्ड-क्लास डिब्बे का
किसी कस्बाती स्टेशन पर रुकना
किसी दबी हुई बात का
धुँआ बन निकलना
सब कैसा लगता है_
कभी बहुत हल्का
कभी

सीसे-सा भारी

1969