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साथ-साथ / केशव
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आओ चलें कहीं
अपने पास से
चलें खुद को लिये साथ
अपने से भागकर नहीं
अपने में से
देखते हुए
इधर-उधर,नीचे-ऊपर
कि अभी-अभी गुज़रा है
सूरज
हमें ठेलता हुआ
कि हवा रख गयी है हमारे सम्मुख
मौसम की गंध का गुलदस्ता
कि वृक्ष झुककर
बैठ गये हैं हमारे साथ
और चीज़ें हो गयी हैं खड़ी
अपने चेहरों के साथ
कि आस-पास सब पड़ा है
जैसे भोर-नहाया जंगल
कि पगडंडी चलने लगी है हमारे साथ-साथ
कि दरिया घुस आया है बस्ती में
कि यहीं-कहीं है पुल
जो ले जायेगा हमें पार