भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम / वर्तिका नन्दा
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:14, 4 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वर्तिका नन्दा }} <poem> मुमकिन है बहुत कुछ आसमान से च...)
मुमकिन है बहुत कुछ
आसमान से चिपके तारे अपने गिरेबां में सजा लेना
शब्दों की तिजोरी को लबालब भर लेना
देखो तो इंद्रधनुष में ही इतने रंग आज भर आए
और तुम लगे सोचने
ये इंद्रधनुष को आज क्या हो गया!
सुर मिले इतने कि पूछा खुद से
ये नए सुरों की बारात यकायक कहां से फुदक आई?
भीनी धूप से भर आई रजाई
मन की रूई में खिल गए झम-झम फूल
प्रियतम,
यह सब संभव है, विज्ञान से नहीं,
प्रेम में आंखें खुली हों या मुंदी
जो प्रेम करता है
उसके लिए कुछ सपना नहीं
बस, जो सोच लिया, वही अपना है।