Last modified on 6 मार्च 2009, at 18:33

दीवारें तोड़ता है वसन्त / राजकुमार कुंभज

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:33, 6 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकुमार कुंभज }} <poem> पृथ्वी का सबसे बड़ा पुरस्क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पृथ्वी का
सबसे बड़ा पुरस्कार है वसन्त
और मनुष्यों के प्रसन्न होने का
सबसे बड़ा कारण भी

पत्थर भी मुस्कुराते हैं तो
इन्हीं दिनों
जब वृक्षों पर मुस्कुराती हैं फुनगियाँ

जीवन को निहारना है तो
खुली रखो
खिड़कियाँ और दरवाज़े सब

दीवारें तोड़ता है वसन्त