जितना भी लिखना चाहो
लिखना दुख
अभी तो जी-भर प्रसन्न हो जाओ
अभी तो वसन्त है
अभी तो एक वैभवशाली
हलचल है हवा में
अभी तो एक बल खाती
अंगड़ाई है जल में
नदी का झुकाव उधर नहीं, इधर है
जिधर पल-प्रतिपल प्रेम है
और जी-भर उजास!
जितना भी लिखना चाहो
लिखना दुख
अभी तो जी-भर प्रसन्न हो जाओ
अभी तो वसन्त है
अभी तो एक वैभवशाली
हलचल है हवा में
अभी तो एक बल खाती
अंगड़ाई है जल में
नदी का झुकाव उधर नहीं, इधर है
जिधर पल-प्रतिपल प्रेम है
और जी-भर उजास!