भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिधर पल-प्रतिपल प्रेम है / राजकुमार कुंभज
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:20, 7 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकुमार कुंभज }} <poem> जितना भी लिखना चाहो लिखना द...)
जितना भी लिखना चाहो
लिखना दुख
अभी तो जी-भर प्रसन्न हो जाओ
अभी तो वसन्त है
अभी तो एक वैभवशाली
हलचल है हवा में
अभी तो एक बल खाती
अंगड़ाई है जल में
नदी का झुकाव उधर नहीं, इधर है
जिधर पल-प्रतिपल प्रेम है
और जी-भर उजास!