Last modified on 10 मार्च 2009, at 19:19

राम राम रटु, राम राम रटु / तुलसीदास

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:19, 10 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }}<poem> राम राम रटु, राम राम रटु, राम राम जप...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

राम राम रटु, राम राम रटु, राम राम जपु जीहा।
राम-नाम-नवनेह-मेहको, मन! हठि होहि पपीहा॥१॥
सब साधन-फल कूप सरित सर, सागर-सलिल निरासा।
राम-नाम-रति-स्वाति सुधा सुभ-सीकर प्रेम-पियासा॥२॥
गरजि तरजि पाषान बरषि, पबि प्रीति परखि जिय जानै।
अधिक-अधिक अनुराग उमँग उर, पर परमिति पहिचानै॥३॥
रामनाम-गत, रामनाम-मति, रामनाम अनुरागी।
ह्वै गये हैं जे होहिगे, त्रिभुवन, तेइ गनियत बड़भागी॥४॥
एक अंग मम अगम गवन कर, बिलमु न छिन-छिन छाहै।
तुलसी हित अपनो अपनी द्सि निरुपधि, नेम निबाहैं॥५॥