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आयौ हो आयौ देव तुम्ह सरनां / रैदास

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कवि: रैदास

आयौ हो आयौ देव तुम्ह सरनां।

जांनि क्रिया कीजै अपनों जनां।। टेक।।

त्रिबिधि जोनी बास, जम की अगम त्रास, तुम्हारे भजन बिन, भ्रमत फिर्यौ।

ममिता अहं विषै मदि मातौ, इहि सुखि कबहूँ न दूभर तिर्यौं।।१।।

तुम्हारे नांइ बेसास, छाड़ी है आंन की आस, संसारी धरम मेरौ मन न धीजै।

रैदास दास की सेवा मांनि हो देवाधिदेवा, पतितपांवन, नांउ प्रकट कीजै।।२।।

।। राग रामकली।।


कवि: रैदास

भाई रे रांम कहाँ हैं मोहि बतावो।

सति रांम ताकै निकटि न आवो।। टेक।।

राम कहत जगत भुलाना, सो यहु रांम न होई।

करंम अकरंम करुणांमै केसौ, करता नांउं सु कोई।।१।।

जा रामहि सब जग जानैं, भ्रमि भूले रे भाई।

आप आप थैं कोई न जांणै, कहै कौंन सू जाई।।२।।

सति तन लोभ परसि जीय तन मन, गुण परस नहीं जाई।

अखिल नांउं जाकौ ठौर न कतहूँ, क्यूं न कहै समझाई।।३।।

भयौ रैदास उदास ताही थैं, करता को है भाई।

केवल करता एक सही करि, सति रांम तिहि ठांई।।४।।

।। राग रामकली।।