भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उत्तर आधुनिक आलोचक / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:01, 20 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |संग्रह= }} <Poem> जब मैंने भूख को भूख कह...)
जब मैंने
भूख को भूख कहा
प्यार को प्यार कहा
तो उन्हें बुरा लगा
जब मैंने
पक्षी को पक्षी कहा
आकाश को आकाश कहा
वृक्ष को वृक्ष
और शब्द को शब्द कहा
तो उन्हें बुरा लगा
परन्तु जब मैंने
कविता के स्थान पर
अकविता लिखी
औरत को
सिर्फ़ योनि बताया
रोटी के टुकड़े को
चांद लिखा
स्याह रंग को
लिखा गुलाबी
काले कव्वे को
लिखा मुर्गाबी
तो वे बोले-
वाह ! भई वाह !!
क्या कविता है
भई वाह !!
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा