Last modified on 23 मार्च 2009, at 17:08

पानी में लकीरें / मनोहर बाथम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:08, 23 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोहर बाथम |संग्रह= }} <Poem> अजीब-सी सीमा है यहाँ नदी ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अजीब-सी सीमा है यहाँ
नदी के बीच से

कौन खींच सकता है
पानी में लकीरें
क्या हुए हैं
दो टुकड़े दिल के भी कभी

मछलियों का आना-जाना
बदस्तूर जारी है - इधर से उधर
कछुए भी नहीं पहचानते सीमा रेखा

जब भी शिकार होती हैं मछलिया~म
उन पर कहीं नहीं लिखा होता
मुल्क़ों का नाम
बस, जानता हूँ सिर्फ़ शिकारी का नाम
और
देखता तड़पती मछलियाँ