Last modified on 23 मार्च 2009, at 19:09

विरासत / हरिओम राजोरिया

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:09, 23 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिओम राजोरिया |संग्रह= }} <Poem> मेरे पूर्वजों ने बा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे पूर्वजों ने बाँधा नहीं नदियों को
जंगल साफ करके बनाये नहीं खेत
यों करने को बहुत कुछ किया
झूठ के बड़े-बड़े पुल खड़े किये
सात कमरों के भीतर क़ैद किया सत्य को
उनके इशारे पर रेते गये कलाकारों के गले
बिछाये गये कामकरों के रास्तों में काँटे
आततायियों के राजतिलक हुए
मक्कारों के वजीफ़े मुकर्रर किये गये

ऐसी ऊँची जात में पैदा होकर
कैसे छुपाऊँ अपनी शर्म को
ऐसे शब्द-शिल्पियों और शिक्षाविदों का क्या करूँ
जो अत्याचार को न्यायसंगत ठहराते रहे
कलंक-गाथाओं को करते रहे महिमा-मण्डित
जिनके रहते अपने ही घरों में
बिलखते-बिलखते गूंगी हो गयीं स्त्रियाँ

कूप-मण्डूकता का पाखाना है मेरे घर में
पोथियों के ढेर में कहाँ जाकर छुपाऊँ चेहरा
अपने मन को कब तलक बरगलाऊँ
पीढ़ियों का सिंचित पाखण्ड
आया है मेरे हिस्से में
किस जल से धोऊँ अतीत की कालिख
इस पवित्रता से कैसे पीछा छुड़ाऊँ !