Last modified on 26 मार्च 2009, at 10:53

शब्द / महेन्द्र गगन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:53, 26 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र गगन |संग्रह= }} <Poem> कहने को शब्द नहीं यूँ ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कहने को
शब्द नहीं
यूँ ही नहीं
गढ़ा होगा मुहावरा

सचमुच
कुछ ऎसा होता है
जो शब्दों से कहने में
छूटता है

जब भी पाते हैं
कुछ ऎसा है
जो निःशब्द है
उसे शब्दों में कितना ही कहो
अनुभव में आता यही
वह छूट गया
जिसे कहने को
गढ़े थे शब्द