भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उस रात की याद में डूबकर / प्रभात त्रिपाठी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:13, 30 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभात त्रिपाठी |संग्रह= }} <Poem> आज उस रात की याद मे...)
आज उस रात की याद में डूबकर
मैंने देखा अभी वो पुराना शहर
वो गली जिसमें बजती थी गीतों की धुन
वो गली जिसमें सोया था बचपन का डर
वो गली जिसके इक मोड़ पर एक दिन
छू गयी थी मुझे इक फिसलती नज़र
वो नज़र जिसकी जज़बात की नींव पर
बस गया मेरी चाहत का छोटा-सा घर
अपनी चाहत की ख़ातिर जिया और मरा
मेरा किस्सा है यारो यही मुख़्तसर