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धुएँ के आकाश में / वंशी माहेश्वरी

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धुएँ के आकाश में
धरती के उजाड़ में
हवा आँखें खोलती है
खण्डहर होते मनुष्यों में
कितनी कहानियाँ खण्डित
कुछ भी नहीं अखण्डित

यतीम बच्चे के
यतीम चेहरे पर
यतीम वर्तमान के चिह्न किस क़दर बेशुमार

ध्वस्त भविष्य
और भी यतीम।