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नशा एक षड्यंत्र है / राग तेलंग

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नशा एक षड्यंत्र है
सत्ता का नशा जिन्हें रहता है और
जो बने रहना चाहते हैं मठों पर काबिज
उन्हें ही पता होता है
कैसे बनाए रखना चाहिए वर्चस्व नशे के द्वारा

लोग तरह-तरह के नशा केंद्रों की ओर ढकेले जाते हैं
या कहें खिंचे चले आते हैं तलब से मज़बूर होकर और
और फँसते चले जाते हैं एक दुष्चक्र में बरस दर बरस
यह मज़बूरी फिर उनकी आदत में आ जाती है
सीना तानकर बात करना ख़त्म होता है ऐसे

नशा करते-करते धुंधला जाती है उनकी ज्योति और
वे सत्ताधीशों के वंशजों के बारंबार चुनाव को
उत्सव की तरह मनाते हैं
उन्हें अहसास ही नहीं हो पाता
उनकी पहचान का संकट
उनके जाने-पहचाने चेहरों की वज़ह से ही है

अपनी गाढ़ी कमाई से नशे के लिए खर्च करते समय
उन्हें दु:ख तो होता है और फिर यह दु:ख
वे नशे से ही दूर करते हैं किसी यार के साथ बैठकर

पीढ़ी दर पीढ़ी बीमारी दर बीमारी जूझते हैं
फिर भी सहज उपलब्ध नशे के रहस्य को वे कभी जान नहीं पाते

खजाना राजा का भरता है तेजी से और
इधर तिजोरियों के पास बैठे सँपेरे ठठाकर हँसते हैं
उधर कराहते हुए दम तोड़ते हैं नशे के गुलाम

फेरी लगाते नशे के सौदागर कभी नहीं दीखते
वे बदलकर भेस लगाते हैं गश्त गली-गली
देखते हैं रोज़ ब रोज़
कितना गहरा हुआ है कुआँ और अभी कितनी प्यास बाकी है
ज़िदगी से लड़ने वाले नशे से हार जाते हैं
पहले कोई एक आदमी समझौता करता है हालात से
फिर दूसरा, फिर तीसरा ...
इस तरह अंतत: देश की रीढ़ झुकती है ।