Last modified on 10 अप्रैल 2009, at 23:37

इसी कोलाहल में / पंकज चतुर्वेदी

198.190.28.152 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:37, 10 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज चतुर्वेदी}} <poem> इसी भीड़ में सम्भव है प्रेम ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इसी भीड़ में सम्भव है प्रेम
इसी तुमुल कोलाहल में
जब सूरज तप रहा है आसमान में
जींस और टी-शर्ट पहने वह युवती
बाइक पर कसकर थामे है
युवक चालक की देह

इसी भीड़ में
सम्भव है प्रेम !