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छूकर न जाया करो / विजय वाते

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यार दहलीज़ छू कर ना जाया करो|
तुम कभी दोस्त बनकर भी आया करो|

क्या ज़रूरी है सुख दुख में ही बात हो,
जब कभी फोन यूँ ही लगाया करो|

बीते आवारा दिन याद करके कभी,
अपने ठीये पे चक्कर लगाया करो|

वक्त की रेत मुठ्ठी में रुकती नहीं,
इसलिए कुछ हरे पल चुराया करो|

हमने गुमटी पर कल चाय पी थी "विजय"
तुम भी आकर के मज़मे लगाया करो|