Last modified on 21 अप्रैल 2009, at 22:11

मंज़र क्या पसमंज़र मेरे सामने है / गोविन्द गुलशन

Govind gulshan (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:11, 21 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: मंज़र क्या पसमंज़र मेरे सामने है फूल नहीं है पत्थर मेरे सामने है ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मंज़र क्या पसमंज़र मेरे सामने है फूल नहीं है पत्थर मेरे सामने है

मैं तो अपनी प्यास बुझाने आया था प्यासा एक समंदर मेरे सामने है

जान से जाऊँ या में उसकी बात रखूँ ख़ून में डूबा ख़ंजर मेरे सामने है

साहिल मिल जाए तो पार उतर जाऊँ चारों सम्त समंदर मेरे सामने है

सच खोलूँ तो ख़ून बहेगा सड़कों पर इक झूठा आडंबर मेरे सामने है

सोच रहा हूँ आईने से लोहा लूँ मुझसा एक सिकंदर मेरे सामने है