भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिलालेख और आदमी / अभिज्ञात

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 26 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिज्ञात }} <poem> कितना सुरक्षित है शिलालेखों का अध...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितना सुरक्षित है
शिलालेखों का अध्ययन
कि वह बदलता नहीं आदमी की गति से।
बदलना, अविश्वसनीय है
और खतरनाक
कुछ लोगों की राय में।
तुम कुछ भी अर्थ दो
वह मौन रहेगा
कितनी मौज है
इस तानाशाही में।
तानाशाह
हर सीने पर
कुछ न कुछ खुदा देखना चाहता है
हर कोरे सफ़े पर
वह जारी कर देता है कोई विध्वंसक फ़रमान।
हर दीवार
जिस पर नहीं चस्पाँ कोई इश्तहार
उस पर वह मूतता है
थूक देता है
अथवा
अपने वीर्य से
बना देता है किसी के जीवन की परिधि
जिसमें
एक चींटी बड़ी आसानी से रेंकती है
शिलालेखा नहीं ललकारता
कि आओ
मैं तुम्हें पढूँ
इसलिए वह पठनीय है
शिलालेख नहीं चीख़ता
कि तुम उसके अस्तित्व पर
अपने नाम की मुहर मारना चाहते हो
इसलिए तुम उससे जुड़े हो।
शिलालेख नहीं चाहता
कि एक लम्बी संगत के बाद भी
तुम विदा के वक़्त
प्यार से पुचकारो
क्योंकि वह जानता है
प्रेम तुम्हारे लिए
एक गणित है
और गणित में
एक ख़ास जगह पर
शून्य बहुत मायने रखता है।