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हम और सड़कें / केदारनाथ अग्रवाल

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सूर्यास्त मे समा गयीं

        सूर्योदय की सड़कें,

जिन पर चलें हम

तमाम दिन सिर और सीना ताने,

महाकाश को भी वशवर्ती बनाने,

        भूमि का दायित्व

        उत्क्रांति से निभाने,

और हम

    अब रात मे समा गये,

स्वप्न की देख-रेख में

सुबह की खोयी सड़कों का

जी-जान से पता लगाने