भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
और का और मेरा दिन / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:31, 28 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल }}<poem> दिन है किसी और का सोना ...)
दिन है
किसी और का
सोना का हिरन,
मेरा है
भैंस की खाल का
मरा दिन ।
यही कहता है
वृद्ध रामदहिन
यही कहती है
उसकी धरैतिन,
जब से
चल बसा
उनका लाड़ला ।