Last modified on 30 अप्रैल 2009, at 18:55

सिर्फ एक बार / विजयशंकर चतुर्वेदी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:55, 30 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी }}विजयशंकर चतुर्वेदी ND ND म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

विजयशंकर चतुर्वेदी


ND ND

मुझे आने दो

हँसते हुए अपने घर

एक बार मैं पहुँचना चाहता हूँ

तुम्हारी खिलखिलाहट के ठीक-ठीक करीब

जहाँ तुम मौजूद हो पूरे घरेलूपन के साथ

बिना परतदार हुए कैसे जी लेती हो इस तरह?

सिर्फ एक बार मुझे बुलाओ

खिलखिलाकर तहें खोलो मेरी

जान लेने दो मुझे

घर को घर की तरह

सिर्फ एक बार।