माल-ए-सोज़-ए-ग़म हाए / फ़ानी बदायूनी
माल-ए-सोज़-ए-ग़म हाए! निहानी देखते जाओ
भड़क उठी है शम्मा-ए-ज़िंदगानी देखते जाओ
चले भी आओ वो है क़ब्र-ए-फ़नि देखते जाओ
तुम अपने मरने वाले की निशानी देखते जाओ
अभी क्या है किसी दिन ख़ूँ रुलायेगा ये ख़ामोशी
ज़ुबान-ए-हाल कि जद्द-ओ-बयानी देखते जाओ
ग़रूर-ए-हुस्न का सदक़ा कोई जाता है दुनिया से
किसी की ख़ाक में मिलती जवानी देखते जाओ
उधर मूँह फेर कर क्या ज़िबाह करते हो, इधर देखो!
मेरी गर्दन पे ख़ंजर की रवनी देखते जाओ
बहार-ए-ज़िन्दगी का लुत्फ़ देखा है और देखोगे
किसी का ऐश मर्ग-ए-नागहानी देखते जाओ
सुने जाते न थे तुम से मेरे दिन रात के शिकवे
कफ़न सरकाओ मेरी बे-ज़ुबानी देखते जाओ
वो उठा शोर-ए-माताम आख़री दीदार-ए-मय्यत पर
अब उठा चाहते हैं नाश-ए-फ़नि देखते जाओ