Last modified on 2 मई 2009, at 02:30

आदमी आदमी से मिलता है / जिगर मुरादाबादी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:30, 2 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जिगर मुरादाबादी }}<poem> Category:ग़ज़ल आदमी आदमी से मिल...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है

भूल जाता हूँ मैं सितम उस के
वो कुछ इस सादगी से मिलता है

आज क्या बात है के फूलों का
रंग तेरी हँसी से मिलता है

मिल के भी जो कभी नहीं मिलता
टूट कर दिल उसी से मिलता है

कार-ओ-बार-ए-जहाँ सँवरते हैं
होश जब बेख़ुदी से मिलता है