Last modified on 3 मई 2009, at 23:17

दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उनको सुनाई न गई / जिगर मुरादाबादी

हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:17, 3 मई 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उनको सुनाई न गई
बात बिगड़ी थी कुछ ऐसी कि बनाई न गई

सब को हम भूल गए जोश-ए-जुनूँ में लेकिन
इक तेरी याद थी ऐसी कि भुलाई न गई

इश्क़ पर कुछ न चला दीदा-ए-तर का जादू
उसने जो आग लगा दी वो बुझाई न गई

क्या उठायेगी सबा ख़ाक मेरी उस दर से
ये क़यामत तो ख़ुद उन से भी उठाई न गई