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बेटी की कविता-5 / नरेश चंद्रकर
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"मैं कबूतर हूँ!"
खेलती हुई वह
फ़र्श पर बैठते हुए कहती है
"ये देखो नीचे अण्डे हैं"
"मैं छोटे-छोटे बच्चे अवश्य बनाऊंगी!"