भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
श्याम से पहले / विजय वाते
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:16, 10 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते }} <poem> ज़रा-स...)
ज़रा-सा सोच भी लेते अगर अंजाम से पहले।
हमें फिर क्यों सज़ा मिलती, किसी इल्ज़ाम से पहले।
कभी भी तुम खुको, कोशिश हमको मनाने की,
कभी राधा भी तट पर आ गई थी, श्याम से पहले।
वो लक्ष्मी हो कि सीता हो,