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सरकार तुम्हारी आँखों में / रवीन्द्र दास
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सरकार तुम्हारी आँखों में
कोई गहरा एक समंदर है
नीला-नीला-सा
छलका-सा ।
गर खफ़ा न हो तो पूछ भी लूँ
एक बूंद
ज़रा मैं भी चख लूँ
शायद जी जाऊँ और तनिक
अमरित के कतरे को चख कर।
सरकार तुम्हारी आँखों का मैं दीवाना
है मझे पता
गुस्ताख़ी है
पर सब्र नहीं मैं कर सकता
सरकार तुम्हारी आँखें हैं
या कोई जादू का दरिया
आबे-हयात के किस्से तो सुनता आया हूँ बचपन से
सरकार तुम्हारी आँखों से
आबे-हयात का सोता ही है फूट पड़ा
मैं जी जाऊँ , मैं जी पाऊँ
इक बार इजाज़त दे दो, बस,
सरकार तुम्हारी आँखों में मैं डूब सकूँ
सरकार तुम्हारी आँखों में
सरकार... ।