भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़्याल / प्रकाश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:41, 12 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |संग्रह= }} <poem> सुबह की मूर्च्छा पर सांझ उदा...)
सुबह की मूर्च्छा पर
सांझ उदास होती है
यह उदासी बताती है
साँझ को सुबह का ख़्याल है!