भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कटी ज़िन्दगी पर लगाना ना आया / तेजेन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:53, 15 मई 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कटी ज़िन्दगी पर लगाना ना आया
लगा ही लिया तो निभाना ना आया

खुदी की बुलंदी रहे नापते हम
कभी हस्ती अपनी मिटाना ना आया

गिरावट का देखा किए हम तमाशा
गो गिरते हुओं को उठाना ना आया

हसीं नक्श हर इक को मसला औ कुचला
अगर्चे कभी कुछ बनाना ना आया

रहे जिन्दगी भर यूं ही बस भटकते
कभी रस्ते सीधे पे जाना ना आया

गरज़ क़े लिए चाहे सब कुछ लुटा दें,
बिना गरज़ क़ुछ भी लुटाना ना आया

सही मान लें जिसको यह दुनियां वाले
समझ कोई ऐसा बहाना ना आया