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धीवरगीत-3 / राधावल्लभ त्रिपाठी

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न स्थल में न विस्तीर्ण गगन में
मैं धीवर हूँ
मेरा जीवन है केवल जल में

बहती रहे झंझा, चलता रहे प्रभंजन
जलता रहे बड़वानल रोकते रहे सब जन
मैं स्थिर हूँ इस सारे क्षणभंगुर खिल में
न कमलालय में न कमलावनि में न कमल में
मैं धीवर हूँ
मेरा जीवन है केवल जल में

अनवरत यात्रा और गमन आगे निरन्तर
नापता हूँ मैं यह आपार सागर
हाथ में लिए पतवार युगल
न विजन में न संकुल कलकल में
मैं हूँ धीवर
मेरा जीवन है केवल जल में।