भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ुदा वो वक़्त न लाये / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:22, 18 मई 2009 का अवतरण
ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि सोग़वार हो तू
सुकूँ की नींद तुझे भी हराम हो जाये
तेरी मसर्रत-ए-पैहम तमाम हो जाये
तेरी हयात तुझे तल्ख़ जाम हो जाये
ग़मों से आईना-ए-दिल गुदाज़ हो तेरा
हुजूम्-ए-यास से बेताब होके रह जाये
वफ़ूर-ए-दर्द से सीमाब हो के रह जाये
तेरा शबाब फ़क़त ख़्वाब हो के रह जाये
ग़ुरूर-ए-हुस्न सरापा नियाज़ हो तेरा
तवील रातों में तू भी क़रार को तरसे
तेरी निगाह् किसी ग़मगुसार को तरसे
ख़िज़ाँरसीदा तमन्ना बहार को तरसे
कोई जबीं न तेरे संग-ए-आस्ताँ पे झुके
कि जिंस-ए-इज्ज़-ओ-अक़ीदत से तुझ को शाद करे
फ़रेब-ए-वादा-ए-फ़र्द पे अएतमाद् करे
ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि तुझ को याद आये
वो दिल जो तेरे लिये बे-क़रार अब भी है
वो आँख जिस को तेरा इन्तज़ार अब भी है