Last modified on 21 मई 2009, at 14:41

काँटे आए कभी गुलाब आए.. / श्रद्धा जैन

Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 21 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= श्रद्धा जैन }} Category:गज़ल <poem> आए काँटे, कभी गुलाब आ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आए काँटे, कभी गुलाब आए
जो भी आए वो बेहिसाब आए

रंग उड़ जाए उनके चेहरे का
जब भी मेरी वफ़ा के बाब<ref>किस्से</ref> आए

अब्र दाना.ई<ref>समझदारी</ref>का हो फिर ओझल
ज़िंदगी में अगर अज़ाब आए

दोस्त बन कर मिले या दुश्मन हो
सामने जब हो, बेनक़ाब आए

घर की छत में दरार जब हो पड़ी
ऐसे आलम में कैसे ख्वाब आए

ऐसे न लबकुशाई की<ref>होंठ खोले</ref>'श्रद्धा'
मान बातों का हो, जवाब आए

शब्दार्थ
<references/>