भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं तुलसी तेरे आँगन की / आनंद बख़्शी
Kavita Kosh से
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:21, 24 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद बख़्शी }} <poem> मैं तुलसी तेरे आँगन की कोई नही...)
मैं तुलसी तेरे आँगन की
कोई नहीं मैं
कोई नहीं मैं तेरे साजन की
मैं तुलसी तेरे आँगन की
माँग भी तेरी, सिंदूर भी तेरा
सब कुछ तेरा, कुछ नहीं मेरा
तोहे सौगन्ध तेरे (मेरे) अँसुअन की
मैं तुलसी तेरे आँगन की
काहे को तू मुझसे जलती है
ऐ री मोहे तो तू लगती है
कोई सहेली बचपन की
मैं तुलसी तेरे आँगन की