भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा एक रंग है / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:02, 26 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर |संग्रह=संसार बदल जाएगा / विष्णु नाग...)
मेरा एक रंग है
एक तो नाकाफ़ी है वैसे
एक से तो कुछ होता नहीं
दो-तीन तो होने ही चाहिए
तीन चार हो तो बेहतर
पाँच-छह हों तो कहना ही क्या
सात-आठ तो शायद ही किसी के होते हों
और नौ-दस की तो सोचना भी फ़िजूल है
लेकिन एक रंग से कुछ होता नहीं
एक की क्या हस्ती है
एक रंग तो सभी का होता है
इसमें मेरा-तेरा क्या है
एक से ज़्यादा हो तो बात करो
एक पर दिन-रात एक मत करो