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निगाहों दिल का अफसाना / आनंद नारायण मुल्ला

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निगाहों दिल का अफ़साना करीब-ए-इख्तिताम आया ।

हमें अब इससे क्या आया शहर या वक्त-ए-शाम आया ।।


ज़बान-ए-इश्क़ पर एक चीख़ बनकर तेरा नाम आया,

ख़िरद की मंजिलें तय हो चुकी दिल का मुकाम आया ।


न जाने कितनी शम्मे गुल हुईं कितने बुझे तारे,

तब एक खुर्शीद इतराता हुआ बला-ए-बाम आया ।


इसे आँसू न कह एक याद अय्यामें गुलिश्ताँ है,

मेरी उम्रे खाँ को उम्रे रफ़्ता का सलाम आया ।


बेरहमन आब-ए-गंगा शैख कौशर ले उड़ा उससे,

तेरे होठों को जब छूता हुआ मुल्ला का जाम आया |