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वत्सलता / हरीशचन्द्र पाण्डे
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आज पिन्हाई नहीं गाय
बहुतेरी कोशिश करता रहा ग्वाला
बछड़ा जो रोज़ आता था अपनी माँ के पीछे-पीछे
उससे लग-लग अलग होकर
नहीं रहा आज
देर तक कोशिश जारी रही ग्वाले की
कि थनों में उतर आये दूध
पर नहीं...
किसी की भी हों
आँखें
अदृश्यता को बखूबी जानती हैं
देने से नहीं
दूध न देने से पता चला
वत्सलता और छाती का रिश्ता!