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किसे देखें कहाँ देखा ना जाये / नासिर काज़मी

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किसे देखें कहाँ देखा ना जाये
वो देखा है जहाँ देखा ना जाये

मेरी बरबादियोँ पर रोने वाले
तुझे महव-ए-फुगाँ देखा ना जाये

सफ़र है और गुरबत का सफ़र है
गम-ए-सद-कारवाँ देखा ना जाये

कहीं आग और कहीं लाशों के अंबार
बस ऐ दौर-ए-ज़मीँ देखा ना जाये

दर-ओ-दीवार वीराँ, शमा मद्धम
शब-ओ-गम का सामान देखा ना जाये

पुरानी सुहब्बतें याद आती है
चरागों का धुआँ देखा ना जाये

भरी बरसात खाली जा रही है
सराबर-ए-रवाँ देखा ना जाये

कहीं तुम और कहीं हम, क्या गज़ब है
फिराक-ए-जिस्म-ओ-जाँ देखा ना जाये

वही जो हासिल-ए-हस्ती है नासिर
उसी को मेहरबान देखा ना जाये