Last modified on 31 मई 2009, at 21:24

उसने कहा था... / प्रेमचन्द गांधी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:24, 31 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमचन्द गांधी |संग्रह= }} <Poem> याद करते रहना मगर ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

याद करते रहना
मगर रोना नहीं
मन करे तो चिट्ठी लिखना
लेकिन, डाकिए की राह
कभी मत देखना

मैं न रोया
न चिट्ठी लिखी
हाँ, याद रखा उसका जाना
और जो उसने कहा था

प्रेम की पीड़ा में
बिना रोये ही
सूख गयीं आँखें
चिट्ठियाँ लिखना तक भूल गये हाथ