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सुँदर सुरँग अँग शोभित अनँग रँग / पद्माकर

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सुँदर सुरँग अँग शोभित अनँग रँग ,
अँग अंग फैलत तरंग परिमल के ।
बारन के भार सुकुमार को लचत अंक,
राजत प्रयँक पर भीतर महल के ।
कहै पदमाकर बिलोकि जन रीझैँ जाहिँ,
अँबर अमल के सकल जल थल के ।
कोमल कमल के गुलाबन के दलके सु,
जात गडि पांयन बिछौना मखमल के ।


पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।