Last modified on 3 जून 2009, at 12:45

सहज सुबासयुत देह की दुगुनि दुति / मतिराम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 3 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मतिराम }} <poem> सहज सुबासयुत देह की दुगुनि दुति , दा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सहज सुबासयुत देह की दुगुनि दुति ,
दामिनि दमक दीप केसरि कनक ते ।
मतिराम सुकवि सुमुखि सुकुमारि अँग ,
सोहत सिँगार चारु जोबन बनक ते ।
सोइबे को सेज चली प्रान पति प्यारे पास ,
जगत जुन्हाई ज्योति हँसनि तनक ते ।
चढ़त अटारे गुरु लोगन की लाज प्यारी ,
रसना दसन दाबै रसना झनक ते ॥


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।