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एक नीला आईना बेठोस / शमशेर बहादुर सिंह

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एक नीला आईना

बेठोस-सी यह चांदनी

और अंदर चल रहा हूँ मैं

उसी के महातल के मौन में ।

मौन में इतिहास का

कन किरन जीवित, एक, बस ।

एक पल की ओट में है कुल जहान ।

आत्मा है

अखिल की हठ-सी ।

चाँदनी में घुल गए हैं

बहुत-से तारे, बहुत कुछ

घुल गया हूँ मैं

बहुत कुछ अब ।

रह गया-सा एक सीधा बिंब

चल रहा है जो

शांत इंगित-सा

न जाने किधर ।