भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मँद महा मोहक मधुर सुर सुनियत / देव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:47, 3 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देव }} <poem> मँद महा मोहक मधुर सुर सुनियत धुनियत स...)
मँद महा मोहक मधुर सुर सुनियत
धुनियत सीस बँधी बाँसी है री बाँसी है ।
गोकुल की कुलबधू को कुल सम्हरै नही
दो कुल निठारै लाज नासी है री नासी है ।
कहि धौँ सिखावत सिखै धौँ काहि सुधि होय
सुधि बुधि कारे कान्ह डाँसी है री डांसी है ।
देव बृजवासी वा बिसासी की चितौनि वह
गाँसी है री हांसी वह फाँसी है री फाँसी है ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।